Thursday, October 16, 2008

अर्ज़ किया है -2

अश्क हूँ मैं मेरी औकात ही क्या है
पर उसकी आँख से निकलता तो मज़ा आ जाता

हजरों चाँद से हैं रोशन, नशीले हैं हर मदिरा से
तू ही बता तेरी आंखों मैं, बाला है की क़यामत है

मेरी लड़खड़ाहट पे हंस मत, मुजे शराबी न समज़
उसकी नशीले चल का यह सब असर है

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