Friday, October 10, 2008

अर्ज़ किया है-1

अदा नही मजबूरी है चाँद की जो चला है बदलो मैं छुपते छुपाते ,
सामने जो खड़े हो आप माथे पे बिंदिया सज़ा के .

मत पूछ kyun शर्म से पीला है यह उगता हुआ सूरज,
माथे पे बिंदिया सज़ा के उसने पलके उठाई होंगी .

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